श्री राम-कृष्ण हों या रावण-कंस! भारत के किसी बच्चे को भी यह बताने की आवश्यकता नहीं है कि वे कैसे थे!हमारे पुराणों के नकारात्मक चरित्र हों या देवता हों, भारत का कण कण उनके स्वरूप को जानता है ! भारत हजारों वर्षों से जैसे उन चरित्रों के साथ जी रहा है, उनको धारण कर के जी रहा है! अब कोई व्यक्ति स्थापित छवि को नकारते हुए आ कर कहे, कि नहीं! राम जी वैसे नहीं थे जैसा तुम जानते हो, राम जी वैसे थे जैसा मैं बता रहा हूँ, तो यह परम्परा "उस धूर्त के मुँह पर थूक देगी" !
हम जब प्रभु राम का ध्यान करते हैं तो आंखों के आगे साँवले रङ्ग के एक सुपुरुष की छवि उभरती है, जो अद्वितीय सुन्दर हैं, जिनके मुख पर दैवीय शान्ति पसरी हुई है, जिनके अधरों पर एक मोहक मुस्कान है। राम अपने जीवन में वृद्ध भी हुए होंगे, पर हम कभी श्वेत दाढ़ी-मूछ वाले राम की कल्पना भी नहीं कर सकते, क्योंकि हमारे देवता चिरयुवा हैं !
ऐसा ही श्री हनुमान जी के साथ है, ऐसा ही भाव माता सीता और भइया लखन के लिए है, बल्कि यही भाव रावण के लिए है। परम्परा से चली आ रही लोककथाएं कहती है कि रावण एक उच्च तपस्वी कुल में जन्मा, परम विद्वान, महान शक्तिशाली, शिवभक्त ब्राह्मण था, पर उसके पूर्व जन्म के शाप के कारण इन सद्गुणों पर उसके राक्षसी गुण प्रभावी हो गए और वह पापात्मा हो गया ! हमारी परम्परा अपने बच्चों को बताती रही है कि सदैव पूजापाठ और देवभक्ति में रत रहने के बाद भी यदि तुम अपने आचरण में धर्म को धारण नहीं करते तो तुम्हारा रावण की तरह पतन हो जाएगा !
तो हमारी परम्परा में रावण की छवि किसी क्रूर, बर्बर, असभ्य, दैत्य की नहीं है, बल्कि एक सुन्दर शरीर वाले बलिष्ठ पुरुष की है, जो सभ्य होते हुए भी अपने अधर्म के कारण पतन को प्राप्त हुआ ! अब यदि हम रावण का चित्रण असभ्य, अशिक्षित, अरबी बर्बरों की तरह करें, तो रावण के बहाने दिए जाने वाले उस धर्मज्ञान का होगा जो कहता है कि यदि आचरण में धर्म न हो तो तुम्हारा सौंदर्य, ज्ञान, कुलवंश, शक्ति सब महत्वहीन हैं !
धर्मिक कथाएं किसी फिल्मी कहानीकार की गढ़ी हुई नहीं हैं कि विलेन का मतलब गब्बर और हीरो का मतलब पियक्कड़ बीरू हो ! वहाँ कंस इसलिए आए ताकि समाज को बताया जाय कि उचित संस्कार नहीं मिलने पर उग्रसेन जैसे धर्मात्मा का पुत्र भी पापी कंस हो सकता है, और हिरण्यकश्यप इसलिए आये ताकि समाज याद रखे कि एक घोर पापी के बेटे को भी संस्कार मिले तो वह प्रह्लाद हो सकता है !
एक बात और है! पौराणिक चरित्रों को निभाने के लिए कलाकारों का चयन भी बहुत सोच कर होना चाहिये, क्योंकि लोग उनमें अपने अराध्य को देखते हैं ! 30 वर्ष पुराने रामायण सीरियल के बूढ़े हो चुके कलाकार अरुण गोविल जी को आज भी देखते ही कोई स्त्री चरणों में गिर जाती है, तो समझना होगा कि इन चरित्रों को निभाने के लिए कैसे आदर्श कलाकारों की आवश्यकता है ! यदि कोई मूर्ख अपनी फिल्म में हमेशा नङ्ग-धड़ंग रहने वाली किसी अश्लील अभिनेत्री से माता सीता का रोल करवाता है, तो सभ्यता का द्रोही है वह धूर्त! वह तिरस्कार के ही योग्य है !
दोष सैफ अली खान का नहीं है, उसे आप उदयभान राठौर की भूमिका दें या रावण की, वह दिखेगा खिलजी और तैमूर लं$ ही ! दोष ओम रावत के चयन में है, उसकी मंशा में है !!
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