सन 1952 में यह घोषित कर दिया गया कि देश से चीता विलुप्त हो गए ।
सोने की चिड़िया कहा जाता था ।
एक वक्त था जब भारत को सोने की चिड़िया कहा जाता था भारत को सोने की चिड़िया बेसुमार सोने होने की वजह से नहीं कहा जाता था, भारत को तो सोने की चिड़िया भारत की विविधताओं की वजह से सोने की चिड़िया कहा जाता था, भारत में काफी कुछ था उनमें से एक चीता भी था जो कि एक समय भारत में काफी तादाद में पाए जाते थे यह पूरे भारतीय उपमहाद्वीप में पाए जाते थे।
विलुप्ति का मुख्य कारण ।
इनकी विलुप्ति का मुख्य कारण इनका बेहिसाब शिकार करना रहा है राजा महाराजाओं द्वारा सिर्फ शौक बस से इनका शिकार किया करते थे जिससे धीरे-धीरे यह विलुप्त होते गए। चीता भी बिल्ली प्रजाति से संबंध रखता है यह धरती का सबसे तेज दोड़ने वाला जानवर है इसकी तेजी की बात करे तो यह एक घंटे में 80 - 130 की तेजी के साथ दोड़ सकता है, चीते कभी इंसानों पर हमला नहीं करते शायद इस वजह से इसका फायदा इंसानों ने उठाया और इनका खूब शिकार किया।
इनको पालतू बनाने का चलन चल गया था ।
यह इंसानों को नुकसान नहीं पहुंचाते जिस वजह से इनको पालतू बनाने का चलन चल गया था ऐसा कहा जाता है कि अकबर के पास सैकड़ों पालतू चीते थे राजा महाराजा इन्हें पकड़कर महलों में पालतू जानवरों की तरह रखते थे जैसे आज के वक्त कुत्ते पाले जाते हैं उसी तरह इन्हें भी पाला जाता था इन्हें बाकायदा प्रशिक्षित किया जाता था अन्य जानवरों के शिकार के लिए जैसे हिरण चीतल आदि छोटे जानवर, पालतू चीते कभी बच्चे पैदा नहीं कर पाते कैद में रहने से उनकी वंश वृद्धि क्षमता घट जाती है वह उनके आवास में ही रहना पसंद करते हैं और वही वह बच्चे पैदा करते हैं।
अकबर भी यह देखकर गदगद हो गया ।
एक इतिहासकार है दिव्य भानु सिंह जिन्होंने लिखा है कि एक बार अकबर एक चीते को जयपुर शिकार पर ले गए उस चीते ने इतनी फुर्ती से शिकार किया कि अकबर भी यह देखकर गदगद हो गया और बाद में उस चीते को आभूषण पहना कर और ढोल नगाड़ों से उसकी तारीफ की अकबर ने 1956 से 1605 कि अपने वक्त में करीब 9000 चित्रों का संग्रह किया था ।
अंग्रेजों के काल में यह विलुप्त होने लगे थे ।
अंग्रेजों ने इनके संरक्षण पर कभी ध्यान नहीं दिया जिसकी वजह से इनका खूब शिकार हुआ और इन्हें लोग पालतू बनाने लगे जिस वजह से इनकी वृद्धि नहीं हो सकी धीरे-धीरे इनकी जनसंख्या कम होती गई , ब्रिटिश काल में इनके शिकार के लिए प्रतियोगिताएं रखी जाती हुई थी।
विदेश से इन्हें आयात किया जाता था ।
विदेश से इन्हें आयात भी करने लगे कुछ राजाओं ने बीसवीं सदी में अफ्रीका से जीते आयात किए थे 1918 में पहली बार चीते विदेश से मंगवाए गए और 1950 तक यह सिलसिला चलता रहा कई वर्ष पहले ।
महाराजा ने देश के आखिरी तीनों चीतो का शिकार किया ।
जब देश आजाद हुआ 1947 में तो उसी वर्ष छत्तीसगढ़ में स्थित कोरिया के महाराजा ने देश के आखिरी तीनों चीतो को शिकार करके मार दिया था और इसी तरह अंग्रेजों से देश आजाद हुआ था, ठीक उसी तरह 1947 में चीते से देश आजाद हो गया था। सन 1952 में यह घोषित कर दिया गया कि देश से चीता विलुप्त हो गए ।
झारखंड में 1975 में चीता देखने का दावा भी किया गया था।