RAJA BHOJ |
इस कहावत में " राजा भोज " एवं गंगु तेली का जिक्र आया है । यहां राजा भोज तो है धार देश के #परमारवंशीय राजा - राजा भोज परमार,को भोज ओर चालुक्य नरेश तैलप को गंगु तेली कहा गया है, यह कहावत क्यो पड़ी, इसके लिए आपको इतिहास के पन्ने पलटने पड़ेंगे ...
सीयक द्वितीय जो कि महाराज भोज के दादा थे, उनके इतिहास से ही हम घटना का वर्णन करते है, जिससे आपको इतिहास समझने में आसानी हो ..
परमार वंश में सीयक द्वितीय नाम के प्रतापी राजा हुए, इन्होंने अपने समय मे सबसे बड़ी शक्तियों ने सुमार राष्ट्रकूटों को बड़ी बुरी तरह हराया था । सीयक द्वितीय को एक बच्चा मिला, वह बच्चा किसी सेंनिक का पुत्र था, जो पिता की मृत्यु के बाद अनाथ हो गया, सीयक द्वितीय उसे महल ले आये, अब वह बच्चा बड़ा योग्य, उसने सीयक द्वितीय को इतना अधिक प्रभावित कर दिया, की सीयक द्वितीय ने अपने खुद के बेटे #सिंधुराज को राजा घोषित न कर, उस अनाथ बच्चे को राजा घोषित कर दिया । उसी सम्राट का नाम आगे चलकर #पृथ्वीवल्लभ_वाक्यपति_मुंज नाम से विख्यात हुआ । पृथ्वीवल्लभ का अर्थ है, सम्पूर्ण पृथ्वी का राजा , वाक्यपति का अर्थ है, अपने वचन( वाक्य ) निष्फल न जाने देने वाला ।।
मुंज कुलीन नही था, लेकिन इसने विजयो की आंधी चला दी, कर्णाट एवं लाट ( कर्नाटक से केरल ) तक का प्रदेश उन्होंने एक ही साथ जीता । छेदी के कलचुरी नरेश #राजदेव_द्वितीय को हराकर उनकी राजधानी को पूरी तरह लुटा । मेवाड़ पर चढ़ाई कर आहाड़ को जीता ।। एवं चित्तौड़गढ़ आदि का क्षेत्र भी मालवा में ही मिला लिया ।।
इन्होंने 6 बार चालुक्य नरेश तैलप को हराया था, लेकिन सातवी बार कैद कर लिए गए, ओर बाद में बड़ी यातनाएं देकर उन्हें मार डाला गया ।।
राजा मुंज के ज्योतिष एवं पुरोहित ने मुंज से कहा की आप इस बार गोदावरी नदी पार नही करें, आपका नाश निश्चित है ।। मुंज नही माने, पुरोहित ने आत्महत्या कर ली , फिर भी मुंज नही रुके ।
तैलप ने मुंज को कैद अवश्य किया, लेकिन राजसी व्यवस्था के साथ अपने महल में ही कैद रखा । यहां तैलप की बहन से मुंज को प्रेम हो गया । धार के सैनिकों में मुंज को आजाद करवाने के लिए सुरंग तक खोद ली थी, लेकिन मुंज राजकुमारी के प्रेम में ऐसा गिरफ्तार था, आया ही नही, उल्टे अपने सेनिको के सुरंग द्वार वाली बात अपनी प्रेमिका को बता दी ... फिर क्या था ??
तैलप ने मुंज को भिखारी जैसी अवस्था मे पहुंचाकर सड़क पर बिठाकर भीख मंगवाई, उसके बाद उन्हें मार डाला ।
इसके बाद सिंधुराज के पुत्र , ओर मुंज के भतीजे " महाराज भोज परमार " ने प्रतिज्ञा की, की वह तैलप का वध उसी प्रकार करेंगे, जिस प्रकार उसने उनके ताऊ का वध किया था .. "
ओर कहते है :- भोज ने अपनी प्रतिज्ञा पूरी भी की, भोज ने अशुभ मुहूर्त में ही गोदावरी नदी पार की, एवं तैलप का वध किया ।।
राजा भोज एवं वाक्यपति मुंज को लेकर एक कथा बहुत प्रचलित है ....कहा जाता है की जब भोज अपनी माता की गर्भ में था, तभी उनके पिता को राजसत्ता की लड़ाई में मार डाला गया था, पिता की छत्रछाया के बिना अपनी माता की शिक्षा से वह बालक बचपन से ही अपने तेज का प्रकाश चारो ओर बिखेरने लगा । एक दिन जब उस बालक ने हाथी पर सवार अपने राज्य के महान सेनापति को जमीन पर रहकर हरा दिया तो, उस बालक के ताऊश्री #पृथ्वीवल्लभ_वाक्यपति मुंज को बड़ी चिंता हुई, तुरंत ज्योतिषियों की बड़ी टोली को आदेश दिया गया की वह भोज की जन्मपत्री देखें, ओर बताएं कि कहीं यह बड़ा होकर मुंज ओर मुंज के पुत्रों के लिए संकट तो नही बन जायेगा ...
हालांकि बालक भोज की अद्भुत सुंदरता और भोलेपन के कारण मुंज को भी उससे बड़ा स्नेह था, लेकिन राजसत्ता चीज ही ऐसी है, जिसका लोभ महाभारत करवा देता है --
ज्योतिषीयो ने घोषणा कर दी, जो बालक आपके आंगन में खेल रहा है, यह साधारण पुरुष नही है, यह गोड़ देश के साथ ही दक्षिण के सारे देश जीत लेगा, ओर आर्यवत के समस्त राजाओ से अपनी अधीनता स्वीकार करवाएगा ।।
वाक्यपति मुंज ने जब यह सुना तो उनके पांव की जमीन खिसक गई !! अगर यह मालवा पर राज करेगा, तो मेरे पुत्र क्या करेंगे ?? अपने सैनिकों को आदेश दिया कि इसे किसी निर्जन वन में लेजाकर मार डालो !!
राजा की आज्ञा अनुसार कुछ सैनिक भोज को किसी निर्जन बन में गए !! भोज को सारा हाल मालूम हुआ तो उन्होंने एक श्लोक लिखकर उन सैनिकों को दिया !! कहा की जब तुम लोग मुझे मारकर राजा के पास जाओ, तो यह पत्र राजा को दे देना ....
बालक की दृढ़ता देखकर सैनिकों ने उसे मारने की योजना को रद्द कर भोज को छुपा दिया, ओर पत्र लेकर मुंज के पास पहुंच गए !!
" महाराज हमने उस बालक को मार डाला है, लेकिन उन्होंने आपके लिए यह पत्र भेजा है "
पत्र में लिखा था :--
मान्धाता स महीपति: कृतयुगालंकार भूतो गत:
सेतुर्येन महोदधौ विरचित: क्वासौ दशस्यांतक:।
अन्ये चापि युधिष्ठिर प्रभृतिभि: याता दिवम् भूपते
नैकेनापि समम् गता वसुमती नूनम् त्वया यास्यति ।।
अर्थातः !! हे राजा, सतयुग का राजा मान्धाता भी चला गया, त्रेता युग था, वह समुद्र पर पुल बांधकर रावण को मारने वाला राम भी नही रहा, द्वापरयुग में युधिष्ठिर आदि भी स्वर्ग लोक चले गए । लेकिन धरती किसी के साथ नही गयी, लेकिन संभव है, की कलयुग में आप इस धरती को साथ ही लेकर जाएंगे ।।
इस श्लोक को पढ़कर वाक्यपति मुंज को बड़ा दुःख हुआ !! हाय !! यह मेने क्या कर डाला, मेने इतने होनहार बालक को मरवाकर धरती ओर राष्ट्र के साथ इतना बड़ा अन्याय कर दिया , मुझे जीवित रहने का कोई अधिकार नही !! यह कहकर अपनी खुद की गर्दन काटने के लिए मुंज ने तलवार उठा ली, तब सैनिकों ने मुंज को रोककर कहा !!
" ऐसा अनर्थ ना करें महाराज !! भोज अपनी जिंदा है ! हमने उस महिमामयी बालक की महिमा से मोहित होकर उसे छुपा दिया था ।"
उसे जल्दी मेरी आँखों के सामने लेकर आओ !! मुंज भोज से मिलने को इस तरह तड़प रहा था, जैसे जल बिन मछली ....
जब सैनिक भोज को लेकर आये, तो मुंज में अपने भतीजे को कसकर गले से लगा लिया, ओर उसी क्षण घोषणा कर दी, की भोज ही मालवा का अगला सम्राट होगा .....
ओर यहां से शुरुवात हुई भारत को एक ऐसा राजा मिलने की ... जो वीरता, ज्ञान ओर विज्ञान की नई सीमारेखा तय करेगा, जहां तक शायद पिछले हजार सालों में कोई नही पहुंच पाया ....
अरबी इतिहासकार एवं व्यापारी सुलेमानी लिखता है, भारतीय राजाओ के पास विशाल सेनाएं हुआ करती थी, किंतु सैनिको को वेतन नही दिया जाता था, राजा लोग धार्मिक युद्धो के मौके पर ही सेनाओं को एकत्र करते थे। वे लोग राजा से बिना कुछ लिए ही निर्वाध रूप से अपना प्रबंध स्वयं ही करते थे ।
लेकिन् राष्ट्रकूट - प्रतिहार - बंगाल के पालो के पास वेतनभोगी सेनाएं थी , ऐसी सेनाओं में देशी एवं विदेशी कोई भी सेंनिक अपनी सेवाएं दे सकता था ।
आज जिस तरह टेक्स की लूट मची है, राजा भोज के काल मे व्यापरियो से 100 रुपये पर मात्र 2 रुपये कर लिया जाता था ।
राजा भोज के समयकाल में ही गजनी के सुल्तान अबू इहसाक के मरने पर उसका सेनापति अलप्तगीन गद्दी पर बैठा ।। यह तुर्को का गुलाम था । इसके बाद सुबुक्तगीन् बैठा । सुबुक्तगीन् के बाद महमूद गजनवी ।।
सुबुक्तगीन ने ईरान, किर्गिस्थान,तुर्कमेनिस्तान , तजाकिस्तान एवं बलूचिस्तान के बड़े क्षेत्रो को जीतकर अफगानिस्तान को घेरना शुरू किया था । अपने पुत्र महमूद गजनी को लेकर उसने हिन्दू शाही राजवंश के राजा #जयपाल_शाही पर आक्रमण कर दिया ।।
ऐतिहासिक आंकड़े कहते है की सुबुक्तगीन एवं महमूद ने जब अफगानिस्तान के लामघन पर आक्रमण किया था, उस समय उनके पास एक लाख तो सिर्फ घुड़सवार थे । इतनी तो जयपाल के पास जनसँख्या ही नही थी ।। जयपाल शाही की मदद करने राजजा भोज भी आगे बढ़े थे, उस समय भारत के तमाम क्षत्रियो का संगठन बना था, लेकिन सबके अपने अपने प्लान थे, अपनी अपनी युद्धनीति थी । अफगानिस्तान पहुंचने से पहले ही हमारे राजाओ में मतभेद हो गया, ओर आपस मे लड़ते लड़ते बचे ।। जयपाल शाही सुबुक्तगीन के हाथों हार गए, पूरे अफगानिस्तान का इस्लामिकरण हुआ ।।
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